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                  मोहिनी सूरत 
                  मोहिनी सूरत देख कर काहे मन ललचायसुंदर काया एक दिन माटी में मिल जाय
 चिंता चिंता सब करें दुख को हरे 
                  न कोयऊपर वाले के सिवा धीर धरे ना कोय
 मानव का मन कब मिला नित होती 
                  तकरारधरती अंबर मिल गए दरिया के उस पार
 बैठना उठना हो कठिन झूठी ऐसी 
                  शानजिस से सुख तन को मिले ऐसे हों परिधान
 देख जवानी नर्तकी इतराई सौ बाररूप ढला तो यों लगा सब माया बेकार
 दीवारों पर बोलता जिस के घर में 
                  कागआता उस घर में अतिथि लेकर अपना भाग
 धन दौलत सब रह गया पुण्य किया 
                  ना दानअंत समय जब आ गया याद आए भगवान
 सच्चा नाता प्रेम का रब जिसका 
                  आधारसारे नाते झूठ हैं सब रिश्ते बेकार
 एक ही पल में छीन ले दाता है 
                  बलवानइज़्ज़त शोहरत जब मिले मत करना अभिमान
 ज्ञानी कोई जब मिले कर आदर 
                  सम्मानगुर जीने के सीख ले हो जीना आसान
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