| जेठी दोहे  धूसर रंग से रंग रहा जेठ हरा परिवेशमौसम राजा ने दिया यह कैसा आदेश
 जेठ लगे सुलगा दिए मौसम ने तंदूरभौजी जैसी धूप अब बनी सास सी क्रूर
 रीते वाबी कूप सर सरस नदी के तीरइत उप पानी खोजती चिड़िया तृषित अधीर
 प्यास वनों में छा गई मौसम गरम मिज़ाजबोला बूढ़ा पेड़ इक हुई कोढ़ में खाज
 वनखंडी ऊजड़ हुई पगडंडी वीरानएकाकीपन की व्यथा बाँचे तपे सिवान
 तपे दिनों से खा रहे जब खजूर तक मातफिर बेचारी दूब की आखिर क्या औकात
 काट रहे दिन ताप के धूल उड़ाते खेतढोएँ मेड़ उदासियाँ नदी फाँकती रेत
 लपटों ने झुलसा दिए नए खिले जलजातअसमय ही पिरिया गए हरे पेड़ के पात
 फूलोंवाली घाटियाँ सहमी ऊजड़ मौनगर्म हवा के काफ़िले रोके भी तो कौन
 सूरज की भट्ठी तपी हवा बड़ी बेपीरअगनबाण बरसा रही झुलसा रही शरीर
 1 जून 2007 |