| काँव काँव कौवे 
करें काँव काँव कौवे करें, कोयल बैठी 
मौनकौओं के इस शोर में, कुहुक सुने अब कौन
 जोड़ घटाना देखकर, उठती मन में 
पीरबाहुबली शासन करें सज्जन हैं बेचीर
 ढूँढे से मिलता नहीं सच को कोई 
ठौरगली गली पत्थर पड़े, झूठ कपट का दौर
 निज स्वारथवश आज नर बने हुए शैतानअभिनय चतुर सुजान कर, खोते निज पहचान
 घासलेट, माचिस नहीं, अब जलते 
तंदूरबेटी तब तुम ब्याहना, हो दहेज भरपूर
 कौन समझता आजकल, बूढ़े जन की पीरपत्थर दिल सब हो गए रोते फिरें फ़कीर
 बूढ़े लाठी टेककर करते हैं बाज़ारघूम रहे बेटे बहू ले सरकारी कार
 1 दिसंबर 2007 |