| कबीरदास 
 कबीर (लगभग १३९९ - १४९५) अपने 
                  समय के उच्च कोटि के संत और क्रांतिकारी सुधारक थे। वे सामाजिक 
                  कुरीतियों और धार्मिक आडम्बरों के विरोधी थे। उन्होंने 
                  सर्वसाधारण की भाषा में कविता की और ब्रज, अवधी, राजस्थानी, 
                  पंजाबी और अरबी-फारसी शब्दों से उसे समृद्ध किया।उनकी कविताओं 
                  में अनुभूति की सच्चाई और भावों की गहराई मिलती है। |  | कबीरदास के दोहे बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ 
                  खजूर।पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।
 पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया 
                  न कोयढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
 जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये 
                  ज्ञान।मोल करो तलवार का पड़ा रहने दो म्यान।।
 पाहन पूछे हरि मिले तो मैं 
                  पूजूँ पहार ।ताते यह चाकी भली पीस खाय संसार।।
 कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी 
                  बनाय।ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।
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