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ब्रजकिशोर वर्मा शैदी
के दोहे

 

 

वंशज अमृत-पुत्र के

याद दिलाता रोज ही, सुबह-सुबह अखबार
घायल क्‍या, मृत ही हुए, सभी मूल्‍य-संस्‍कार।

होगी ऐसी काल-गति, था किसको अनुमान
वंशज अमृत-पुत्र के, करते हैं विष-पान।

पा मुक्‍तक भी, हंस! तुम, रहे सिकोड़े पंख
गर्व-सहित दिखला रहा, बगुला, सीपी-शंख।

जिसका आंगन एक हो, साझा खान व पान
ढूंढे से भी अब नहीं, ऐसे मिलें मकान।

बच्‍चा गोदी में लिए, मरियल-सा, बीमार
बैठी वह फुटपाथ पर, बेचे सेब, अनार ।

उसकी ममता का यही, अर्थशास्‍त्र है ठेठ
दो बच्‍चों को बेचकर, भरे चार का पेट।

रिश्‍तों की अब बात क्‍या, सब हैं अंकल-आंट
पेड़ सभी बस ट्री लगें, हर पौधा है प्‍लांट!

२६ जुलाई २०१०

 

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