पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ८. २०२२     

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कुण्डलिया हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला रचनाकारों से

यात्राओं के दंश

 

 

खाली जेबें, भरी दुकानें
लगते सब बाज़ार पराये
गुमसुम-से सोचें---
'दुनिया के इस मेले में
हम क्यों आए'

यहाँ हाथ से हाथ अजनबी
इस मेले की बात निराली
मौत बहुत सस्ते में मिलती
जीवन महँगा, शर्तें काली
घुट-घुट कर चुप रह आँसू पी
होंठों पर
हैं फूल खिलाए

भीड़ों में भी घोर अकेली
यात्राओं के दंश भयंकर
रिश्तों-भरी हवेली, लेकिन
धीर बँधाए कब कोई स्वर
फूलों की घाटी के सपने
काँटों से
हम गये सताए

अपनी तो सब की सब राहें
बीहड़ में जाकर खो जातीं
दोपहरी में मृग-तृष्णाएँ
मरुथल-बीच रहें भटकातीं

सोचें-- अनहोनी हो जाए
सिर पर
कोई बदली छाए

- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

इस माह

गीतों में-

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निर्मल विनोद

अंजुमन मे-

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रमा प्रवीर वर्मा

छंदमुक्त में-

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डॉ. शरदिन्दु मुकर्जी

दिशांतर में-

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डॉ. क्षिप्रा शिल्पी

क्षणिकाओं में-

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दीपक गोस्वामी

पुनर्पाठ में-

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भारतेन्दु मिश्र

विगत माह

गीतों में-

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गिरिजा कुलश्रेष्ठ

अंजुमन मे-

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ओंकार सिंह विवेक

छंदमुक्त में-

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अमित खरे

दिशांतर में-

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विनीता तिवारी

दोहों में-

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कुमार गौरव अजीतेन्दु

पुनर्पाठ में-

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आचार्य भगवत दुबे

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन