पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ७. २०१७

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विलम्बित भोर

 

 

मुक्त नभ पर लालसा की
लालिमा है
पर धरा पर लाज का
कुहरा जमा है

कूच को
तैयार बैठी रात काली
भोर हाथों में लिए शत रंग थाली
मिलन का है गान यह कलरव प्रभाती
किन्तु अब भी भाग्य का
सूरज थमा है

कमलिनी के
अधर मधुकर चूमते हैं
गुम चुका चन्दा चकोरे ढूँढते हैं
रात दिन के मध्य यों अटका सवेरा
देह में अटकी हुई ज्यों
आत्मा है

हो नहीं पाईं
प्रकाशित क्यों दिशाएँ
सबल सूरज की भला क्या विवशताएँ
सोख लेता ऊर्जा–वह शून्य कैसा
क्या कलुष यह वासनाओं
का जमा है

- कुँवर रतन सिंह

इस माह

गीतों में-

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कुँवर रतन सिंह

अंजुमन में-

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अरुण तिवारी अनजान

छंदमुक्त में-

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श्रद्धा यादव

दोहों में-

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अमन चाँदपुरी

पुनर्पाठ में-

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अवनीश सिंह चौहान

पिछले माह
१ जून २०१७ को प्रकाशित अंक में

गीतों में-
शशि पुरवार

अंजुमन में-
गुलाब जैन

छंदमुक्त में-
परमेश्वर फुँकवाल

मुक्तक में-
ऋषभदेव शर्मा

पुनर्पाठ में-
अश्विनिकुमार विष्णु

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी