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२३. ८. २०१०

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रंग-गंध के गाँव में

 

यह भँवरा मँडराता-फिरता
रंग-गंध के गाँव में

फूलों का मन भरमाने को
मीठे रसमय गीत सुनाता
उनको झूठी प्रीत दिखाकर
मादक मधु-मकरंद चुराता

अपना काम बनाता रहता
जज्बातों की छाँव में

कहने को कोमल कलियों पर
जाने कितना प्यार लुटाता
लोक-लाज सब छोड़-छाड़ के
मंजरियों को खूब रिझाता

सबको सैर कराता रहता
है कागज की नाव में

जो जितना आवारा रहता
बनकर के बंजारा रहता
गली-गली में उसकी चर्चा
आसमान का तारा रहता

नये समय की चालें चलता
बाँधे घुँघरू पाँव में

-अवनीश सिंह चौहान

इस सप्ताह

गीतों में-

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छंदमुक्त में-

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गीतों में-
विजयकिशोर मानव

छंदमुक्त में-
प्रयाग शुक्ल

अंजुमन में-
राजेन्द्र पासवान घायल

क्षणिकाओं में-
सुषमा भंडारी

पुनर्पाठ में-
रवींद्र मोहन दयाल

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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