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अभिव्यक्ति  ८. १२. २००८

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साहिल को अपनाना हो तो

  साहिल को अपनाना हो तो तूफ़ानों से हाथ मिलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

किसे पता सुनसान सफर में कितने रेगिस्तान मिलेंगे।
कौन बताए किस पत्थर के सीने से झरने निकलेंगे।
प्यास अगर हद से बढ़ जाए आँसू पीकर काम चलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

मंज़िल तक तो साथ न देंगे आते जाते साँझ सवेरे।
अपनी-अपनी चाल चलेंगे कभी उजाले कभी अँधेरे।
रातें राह दिखाएँगी तू बस छोटा-सा दीप जलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

ज़ोर-शोर से उमड़-घुमड़ कर मौसम की बारात उठेगी।
धीरे-धीरे रिमझिम होगी लेकिन पहले उमस बढ़ेगी।
सावन जम कर बरसेगा दो पल झूलों की बात चलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

घड़ी बहारों की आने दे भर लेना चाहत की झोली।
आवारा पागल भँवरे से मस्त पवन इठलाकर बोली।
कलियों का मन डोल उठेगा ज़रा सँभल कर डाल हिलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

- मदन मोहन अरविन्द

इस सप्ताह

गीतों में-

पुनर्पाठ में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में

हास्य व्यंग्य में-

पिछले सप्ताह
दिसंबर २००८ के अंक में

छंदमुक्त में-
ऋषभदेव शर्मा

पुनर्पाठ में-
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

गीतों में-
डॉ. विष्णु सक्सेना

अंजुमन में-
अरुण मित्तल अद्भुत

दोहों में-
शैलेन्द्र शर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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