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अभिव्यक्ति २४. ११. २००८

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बदल जाए मौसम

 

मैं तो अपने दिल की कोई बात न कह पाया
तुम पूछो तो देखो शायद बदल जाय
मौसम

विगत दिनों से आसमान का
था मिजाज फीका
अनहोनी हो गयी
जायका बदल गया
जी का
बस फुहार से तर होने की हसरत थी बाकी
ओले जैसे पाये मैंने झोली के
शबनम

कई बार जीवन में ऐसे
अवसर आये है,
एक ओर है पुष्पकुंज
तो उधर
शिलाएँ हैं
मै चुपचाप सहमकर अपनी राह चला आया
नाम रूप पर पाने जाने कितने
संसकरन

शैल शिखर से टकराना भी
देखो तो आसान नहीं,
अब तक तो
सब कुछ था लेकिन अब
देखो पहचान नहीं
दर्दे दिल बादल का सच में दरिया हो जाना
बस बह जाना गली-गली वन उपवन
जड़ जंगम

--क्षेत्रपाल शर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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-|- सहयोग : दीपिका जोशी
 
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