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                        राई जितना पुण्य है,  
                        पर्वत जितना पाप   
                         
                        विश्वासों की चिड़िया डरती  
                        घुट-घुट हर पल आहें भरती  
                        कोई है ना सुनने वाला  
                        एक अकेली जीती मरती  
                        अपनेपन को -  
                        लग गया,  
                        आज किसी का शाप  
                         
                        
                        
                        नागफनी घोटालों की है  
                        चलती कपटी चालों की है  
                        झेल रहे नित पीड़ा गहरी  
                        हालत यह रखवालों की है  
                        मन से सुख -  
                        अब है उड़ा,  
                        
                        
                        बनकर सारा 
                        भाप  
                         
                        मन खेतों में नफरत उगती  
                        प्यासी-प्यारी हसरत उगती  
                        काँटों के मन अब भी गहरी  
                        केवल रोज शरारत उगती  
                        राम-नाम का -  
                        कर रहे,  
                        कपटी बगुले जाप 
                        
                        -श्याम 
                        अंकुर  |