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वेदना रह-रह
कसक जाती हृदय में
रंग के उत्सव कहो कैसे मनाएँ
मणि अभावों की
रही माथे जड़ी है।
सुने क्रन्दन कौन
क्या किसको पड़ी है?
बधिर, नयन विहीन पहरेदार सोया
क्या कहें? अब - आईना कैसे दिखाएँ
कण्ठ सूखे हैं
नदी के कूल बैठे।
देख गँदलापन
तृषा भी भूल बैठे।
पालथी मारे निशा बैठी हठी सी
इस तिमिर में भैरवी कैसे सुनाएँ
बूँद बारिश की
नहीं धरती पे आती।
दीप ताके तेल को
ले शुष्क बाती।
जब यहाँ, किल्लत-कफ़न की हो शवों को
जन्मदिन का जश्न फिर कैसे मनाएँ
- राम गरीब विकल |