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बूढ़ा बरगद
इतिहास समेटे बैठा है |
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वो बूढ़ा
बरगद
सदियों से सब देख रहा
इस गाँव के गुजरे
सभी पुराने से पल छिन!
उसने देखा हरिया कंधे पर हल लादे
उसने देखा धनिया ने कंडे जब थापे
उसने देखा हीरा मोती को बुधुआ सँग
तपती दोपहरी खेत जोतते बिन हाँफे
उसने देखा है
एक एक पैसा गिनते
रामू काका को
खाद बीज लाने के दिन!
उसने चौपालों में हुक्के का राग सुना
आल्हा ऊदल का क़िस्सा रातों जाग सुना
मेले देखे, झूले झूले, चुस्की खायी
हर दिन अम्माँ जब सुबह चढ़ाने जल आयी
वह देख रहा
सब धीरे धीरे भाग रहे
मिट्टी की ममता
छोड़, शहर की लगी लगन!
वो वैद्य कि जो नाड़ी ज्ञानी धन्वन्तरि थे
वो झाड़ फूँक, बाबा के जन्तर मन्तर थे
जब रमुआ रोया देख तड़पते भाई को
लाये कैसे महँगी बीमार दवाई को
बूढ़े बरगद ने
तिल तिल कर मरते देखा
रमुआ के
छोटे भाई को जब लगी अगन!
ललुआ अब लालाराम सेठ बन बैठ गये
त्रिपुरारी गन्दी राजनीति में, पैठ गये
थोड़ी सी शहरी हवा लगी, बंसी काका
भी जुगत लगा सरपंची जीती, ऐंठ गये
बूढ़ा बरगद
इतिहास समेटे बैठा है
साधू सा बस
चुपचाप करे हरि का सुमिरन!
1
- कृष्ण भारतीय |
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इस पखवारे
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
छोटी कविताओं में-
पुनर्पाठ में-
पिछले पखवारे
१५ जनवरी २०१७ को
(मकर
संक्रांति के
अवसर पर)
गीतों में-
अंकित काव्यांश,
अनिल
कुमार मिश्रा,
आभा
सक्सेना,
आशा
देशमुख,
उर्मिला
उर्मि,
ऋताशेखर मधु,
कल्पना
रामानी,
कुमार
गौरव अजीतेन्दु,
कृष्णकुमार तिवारी,
कृष्ण
भारतीय,
चंद्रप्रकाश पाण्डेय,
निशा
कोठारी,
नीरज द्विवेदी,
पंकज
परिमल,
पद्मा
मिश्रा,
पूर्णिमा वर्मन,
प्रदीप
शुक्ल,
मधु
शुक्ला,
रमा प्रवीर वर्मा,
रविशंकर मिश्र रवि,
रश्मि
कुलश्रेष्ठ,
राजीव राज,
रामकिशोर दाहिया,
रावेंद्रकुमार रवि,
वेदप्रकाश शर्मा वेद,
श्रीधर
आचार्य शील,
शिवानंद
सिंह सहयोगी,
शालिनी
श्रीवास्तव,
संजीव
सलिल,
सज्जन
धर्मेन्द्र,
सुरेश
कुमार पांडा,
सीमा
अग्रवाल,
सौरभ पाण्डेय,
त्रिलोचना।
अंजुमन में-
अनीता
माण्डा,
लोकेश
नशीने,
शशि
पुरवार,
सुरेन्द्रपाल वैद्य,
हरि
वल्लभ शर्मा।
छंदमुक्त में-
परमेश्वर फुँकवाल,
मधु प्रधान,
मधु
संधु,
रंजना गुप्ता,
सरस्वती माथुर,
सुनीता।
छंदों में-
ज्योतिर्मयी पंत,
परमजीत
कौर जीत,
राम
शिरोमणि पाठक,
शशि
पाधा,
शैलेष गुप्त 'वीर'
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