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आदमी |
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खींच कर
परछाइयों के दायरे
आइनों पर घूमता है आदमी
अथ --
फफूँदी पावरोटी
केतली-भर चाय
इति --
घुने रिश्ते उदासी
भीड़ में असहाय
साँप-सा
हर आदमी को
सूँघता है आदमी
उगा आधा सूर्य
आधा चाँद
हिस्सों में बँटा आकाश
एक चेहरा आग का है
दूसरे से झर रहा है
राख का इतिहास
आँधियों में
मोमबत्ती की तरह
ख़ुद को जलाता-फूँकता है आदमी
- भगवानस्वरूप सरस |
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इस पखवारे
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१ दिसंबर २०१६ को
प्रकाशित
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