पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. १२. २०१६

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यह नयी झुग्गी

 

 

यह नयी झुग्गी अभी तनकर खड़ी तो है
देख लेना टूटकर गिर जाएगी
कल तक

बस्तियाँ बोझिल, उनींदी भोर में
पीर डूबी क्रन्दनों के शोर में
बन्द रोशनदान जैसी जिंदगी
सब्र में लिपटी हुई शर्मिन्दगी
नीति की दुर्गति
भयावहता गिरावट की
हर किसी की आँख में तिर जाएगी
कल तक

हर हथेली पर उभरते आबले
पाँव के नीचे लरजते जलजले
कामनाएँ देर तक सोती हुई
वेदनाएँ रात भर रोती हुई
गुदगुदी करती
समय की खिलखिलाहट भी
मौन साधे दर्द के घर जाएगी
कल तक

घर गिरे, उजड़ीं पुरानी बस्तियाँ
फिर उठीं चौरास्तों से गुमटियाँ
बन्द आँखों में सुलगती आग है
आँसुओं में अग्निधर्मा राग है
आँधियाँ शायद
सभी कुछ ध्वस्त ही कर दें
किन्तु मिहनत फिर उसे सिरजाएगी
कल तक।

- मुकुंद कौशल

इस पखवारे

गीतों में-

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मुकुंद कौशल

अंजुमन में-

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अनीता मांडा

छंदमुक्त में-

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ब्रजेश नीरज

दोहों में-

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सपना मांगलिक

पुनर्पाठ में-

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अनिल वर्मा

पिछले पखवारे
१५ नवंबर २०१६ को प्रकाशित
अंक में

गीतों में-
शशि पाधा

अंजुमन में-
कृष्ण कुमार तिवारी

छंदमुक्त में-
सरस्वती माथुर

दोहों में-
राजेन्द्र वर्मा

पुनर्पाठ में-
आनंद शर्मा

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
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