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मन अँगना
में चन्दन सुरभित |
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मन अँगना में चन्दन सुरभित
केसर अंग झरे
जूही चम्पा सखी सहेली
कुंकुम माँग भरे
सज धज निकली सोन गुजरिया
रूप गंध बिखरे
ताल तलैया पनघट पोखर
गुपचुप बात हुई
गीतों की लड़ियों को बुनते
आधी रात हुई
अधरों पे थे लाज के पहरे
चितवन बात करे
सज धज निकली सोन गुजरिया
रूप गंध बिखरे
सतरंग चुनरी उड़-उड़ जाए
मनवा बाँध न पाए
अम्बर छूती आशाओं के
सपने नैन समाए
भरी गगरिया छल-छल छलके
रुनझुन पाँव धरे
सज धज निकली सोन गुजरिया
रूप रंग निखरे
- शशि पाधा |
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