पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. १०. २०१६

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अविराम सफर

 

 

कड़ी धूप पल भर की छाया
जीवन में विश्राम कहाँ
यह अविराम सफर है इसमें
चैन कहाँ! आराम कहाँ!

झुलसाती दुपहर जैसे ही
हमको पहर लगे सारे
जो भी प्यास बुझाने आता
उसके घूँट लगे खारे

माँ की गोदी-सी सुखदायी
लोरी गाती शाम कहाँ!

जो अपने से लगे उन्होंने
किया कपट, छल-द्वेष किया
हर आशा तोड़ी दर्पण-सी
सारा श्रम निःशेष किया

दुख बरसे सावन-भादों से
सुख की भोर ललाम कहाँ!

नजरों में विश्वास न होता
वाणी में उल्लास नहीं
दूर-दूर तक अपनेपन का
होता है आभास नहीं

धैर्य बँधाते प्यार लुटाते
वे कान्हा बलराम कहाँ!

- डॉ. राकेश चक्र

इस पखवारे

गीतों में-

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डॉ. राकेश चक्र

अंजुमन में-

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आभा सक्सेना

छंदमुक्त में-

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अनीता माँडा

दोहों में-

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डॉ. मनोहर अभय

पुनर्पाठ में-

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अमृत खरे

 

पिछले पखवारे
१५ सिंतबर २०१६ को प्रकाशित अंक में

गीतों में-

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भवेश चंद
जायसवाल

अंजुमन में-

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ठाकुरदास सिद्ध

छंदमुक्त में-

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रंजना गुप्ता

मुक्तक में-

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आचार्य संजीव सलिल

पुनर्पाठ में-

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अमिताभ त्रिपाठी अमित

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

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