पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१५. ८. २०१६

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आ गई हैं राखियाँ

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हर गली बाजार में अब छा गई हैं राखियाँ।
प्रेम का त्यौहार लेकर आ गई हैं राखियाँ।
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दूर भाई है अगर तो क्या हुआ, चिंता नहीं
कूरियर के साथ भी तो जा रहीं हैं राखियाँ।
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राखियाँ जिसने बनाईं शुक्रिया उसका भी है
हर बहिन के प्यार को दिखला रही हैं राखियाँ
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डोर हैं ये प्यार की बस जोड़ना हैं जानतीं
हाथ में बँधकर दिलों तक जा रहीं हैं राखियाँ
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हार चूड़ी और कँगना चाहिए कुछ भी नहीं
मात्र रक्षा का वचन भरवा रहीं हैं राखियाँ
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मोल राखी का चुकाना है बड़ा मुश्किल यहाँ
देख लो इतिहास को समझा रहीं हैं राखियाँ
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खीर है, मीठी सिवैयाँ, बन रहे पकवान हैं
है अगर रूठा कोई, मनवा रही हैं राखियाँ।
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साल का त्यौहार है रिश्ते निभाने के लिये
याद बचपन फिर हमें करवा रही हैं राखियाँ
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- बसंत कुमार शर्मा

इस पखवारे

गीतों में-

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अखिल बंसल

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अशोक शर्मा कटेठिया

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अश्विनीकुमार विष्णु

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अमिताभ त्रिपाठी अमित

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आभा खरे

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कुमार गौरव अजीतेन्दु

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कृष्ण भारतीय

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नीरज द्विवेदी

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प्रेरणा गुप्ता

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भावना तिवारी

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मधु प्रधान

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मधु शुक्ला

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रंजना गुप्ता

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वेदप्रकाश शर्मा वेद

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शंभु शरण मंडल

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शशि पाधा

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शशि पुरवार

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शुभम श्रीवास्तव ओम

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संजीव वर्मा सलिल

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सीमा अग्रवाल

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सौरभ पाण्डे

अंजुमन में-

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अमित वागर्थ

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आभा सक्सेना

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कल्पना रामानी

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बसंत कुमार शर्मा

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संजू शब्दिता

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सुरेन्द्रपाल वैद्य

छंदों में-

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ओमप्रकाश नौटियाल (दोहे)

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कल्पना मनोरमा (दोहे)

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मंजु गुप्ता (दोहे)

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राम शिरोमणि पाठक (दोहे)

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शशि पुरवार (दोहे)

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परमजीत रीत (कुंडलिया)

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सरस्वती माथुर (मुक्तक)

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सीमा हरिशर्मा (घनाक्षरी)

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी