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जब से पेड़
कटा |
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जब से पेड़ कटा बरगद का
शहर दिखाई देता घर से
चमगादड़ के गाँव उजड़कर
किसी अपरिचित
देश जम गये
घुघुआ के परिवार बिछड़कर
भेष बदलकर
कहीं रम गये
झूले हैं बरोह के अनमन
नहीं निकलती डाली डर से
सुना किसी से रात उनींदी
दुविधा बैठी
है कोने में
खड़ी हुई है खिड़की छत पर
पूरा अंग
लदा सोने में
फसलों की हरियाली पत्थर
उतर गया है पानी सर से
जहाँ दुपहरी थकन मिटाती
चिड़ियों का
आना-जाना था
मदिर हवा के पंख लगे थे
छाया का
ताना-बाना था
उपनिवेश के इस अमृत से
दुष्प्रभाव का ओला बरसे
- शिवानंद सहयोगी |
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इस पखवारे
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
दोहों में-
पुनर्पाठ में-
पिछले पखवारे
१५ जून २०१६ को
प्रकाशित शिरीष विशेषांक में
गीतों में-
अखिल बंसल,
अश्विनी
कुमार विष्णु,
आभा खरे,
आभा सक्सेना,
उमा प्रसाद
लोधी,
ऋता शेखर
मधु,
कल्पना
मनोरमा,
कुमार गौरव
अजीतेन्दु,
कृष्ण कुमार तिवारी,
कृष्ण
भारतीय,
जगदीश पंकज,
निर्मल शुक्ल,
प्रदीप
शुक्ला,
बसंत कुमार
शर्मा,
भावना
तिवारी,
मधु प्रधान,
रविशंकर
मिश्र रवि,
राजेन्द्र
वर्मा,
रामशंकर
वर्मा,
रामेश्वर प्रसाद सारस्वत,
रावेंद्रकुमार रवि,
शशि पाधा,
शीला पांडे,
शुभम श्रीवास्तव ओम,
संजीव वर्मा
सलिल,
सीमा
अग्रवाल,
सुरेश पांडा,
सौरभ पांडेय।
अंजुमन में-
कल्पना
रामानी,
सुरेन्द्रपाल वैद्य,
सोनरूपा विशाल,
क्षिप्रा शिल्पी।
छंदमुक्त में-
उर्मिला
शुक्ल,
परमेश्वर
फुँकवाल,
मीनाक्षी
धन्वंतरि,
शैलेष गुप्त
वीर,
सरस्वती
माथुर।
छंद
में-
ओमप्रकाश
नौटियाल,
परमजीत
रीत,
शशि पुरवार,
ज्योतिर्मयी
पंत
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