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धूप की
स्वर्णिम किरन |
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गुनगुनाती धूप की स्वर्णिम
किरन
दे रही थपकी हमारे द्वार पर
गा रही है नव प्रभाती का भजन।
रोशनी की हर किरन का मोल है
धूप की हर किरन पर अनमोल है
हो सके तो कुछ बचाकर रख इसे
अन्यथा खतरे में अब भूगोल है
ये हृदय की कालिमा धो जाएगी
और कर देगी प्रकाशित तन व मन।
मत उजाले के लिए तू घर जला
जेहन में बारूद को अब मत गला
बन्द कर दे हरकतें शैतान की
हो सके तो कुछ नए दीपक जला
अन्यथा जिस दिन फँसेगा चक्र में
ओढ़ लेगा एक नफरत का कफ़न।
तू अँधेरे से नहीं कुछ पाएगा
व्यर्थ ही दीवार से टकराएगा
धूप से संजीवनी मिल जाएगी
यदि समर्पित तू उसे हो जाएगा
भूलकर वो घाव जो तूने दिए
फिर गले तुमको लगा लेगा वतन।
- प्रमोद कुमार 'सुमन' |
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इस पखवारे
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
माहिया में-
पुनर्पाठ में-
पिछले पखवारे
१५ मई २०१६ को
प्रकाशित देवदारु विशेषांक में
गीतों में-
अखिल
बंसल,
अनुराग
तिवारी,
अमिताभ
त्रिपाठी अमित,
अलका प्रमोद,
अश्विनी
कुमार विष्णु,
उमाप्रसाद लोधी,
ऋता शेखर मधु,
कुमार
गौरव अजीतेन्दु,
कृष्ण
कुमार तिवारी,
कृष्ण
भारतीय,
गीता पंडित,
जगदीश व्योम डॉ.,
चंद्रकुँवर बर्त्वाल,
ज्योतिर्मयी पंत,
निर्मल शुक्ल,
पवन प्रताप सिंह पवन,
प्रदीप
शुक्ला,
बसंत
कुमार शर्मा,
बुद्धिनाथ मिश्र,
भोलानाथ कुशवाहा,
मधु
प्रधान,
मधु शुक्ला,
मानोशी
चैटर्जी,
रामेश्वर प्रसाद सारस्वत,
रावेंद्रकुमार रवि,
वेदप्रकाश शर्मा वेद,
शशि पाधा,
शीला पांडे,
शुभम श्रीवास्तव ओम,
सरस्वती माथुर,
सीमा
अग्रवाल,
सौरभ पांडेय। छंदों में-
धमयंत्र
चौहान,
परमजीत
कौर रीत,
भावना तिवारी। अंजुमन में-
आभा सक्सेना,
कल्पना
रामानी,
सुरेन्द्रपाल वैद्य।
छंदमुक्त में-
कल्पना मनोरमा,
मंजु महिमा,
संध्या सिंह।
क्षणिकाओं में-
लेष गुप्त वीर
गौरव ग्राम में-
त्रिलोचन।
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