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तो अकेला
मैं नहीं |
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साथ मेरे चल रही है इत्र में
डूबी हवा
तो अकेला मैं नहीं हूँ
आज कितने बाद जूड़े-सा बँधा मन
आज अँजुरी फूल-सा हल्का हुआ तन
धमनियों में बज उठी है शरद-पूनो की विभा
तो अकेला मैं नहीं हूँ
अब गगन है रेशमी आँचल रूपहला
तारकों में प्यार का रोमांच पहला
चाँद के हँसते नयन में बन गयी काजल घटा
तो अकेला मैं नहीं हूँ
चाँदनी आसंग में खिलती हँसी है
चूड़ियों की खनक-मर्मर में बसी है
झील के सौ टूक दर्पण में किसी का चेहरा
तो अकेला मैं नहीं हूँ
सीढ़ियाँ कर पार वर्षों की निमिष में
मैं खुली छत पर खड़ा ठंडी तपिश में
बाहुओं में बँध गई-अनटूट शीशे की लता
तो अकेला मैं नहीं हूँ
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- राजेन्द्र प्रसाद सिंह |
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