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बाग वाला
दिन |
111
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उदासी में खुशी की
आस वाला दिन
आज फिर बाग वाला दिन
मधुर छनती
झर रही यह धूप सर्दी की
याद आती चाय
अदरक और हल्दी की
पाँव के नीचे
नरम है दूब मनभावन
चुभ रही फिर भी
हवाएँ कड़क वर्दी सी
बरोसी में सुलगती
आग वाला दिन
आज फिर बाग वाला दिन
खींच कर
आराम कुर्सी एक कोने में
तान दी लंबी दुपहरी
सुस्त होने में
रह गए यों ही पड़े
जो काम करने थे
गुम रहे हम अपने भीतर
आप होने में
सुगंधों में उमगती
याद वाला दिन
आज फिर बाग वाला दिन
- पूर्णिमा वर्मन |
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इस पखवारे
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
गद्य कविता में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले पखवारे
१ नवंबर
२०१५ को प्रकाशित
दीपावली विशेषांक
में
गीतों में-
अनुराग तिवारी,
अश्विनी कुमार विष्णु,
अशोक शर्मा,
आभा खरे,
उमा प्रसाद लोधी,
कुमार गौरव अजीतेन्दु,
कुमार रवीन्द्र,
कृष्ण भारतीय,
परमजीत कौर रीत,
प्रदीप शुक्ल,
भारतेन्दु मिश्र,
भावना तिवारी,
मानोशी चैटर्जी,
बसंत कुमार शर्मा,
रंजना गुप्ता,
रमेश राज,
रविशंकर मिश्र रवि,
राजेन्द्र वर्मा,
रामेश्वर प्रसाद सारस्वत,
रावेन्द्र कुमार रवि,
शशि
पाधा,
संजीव
वर्मा सलिल,
सीमा अग्रवाल,
सीमा हरि शर्मा,
सुरेश पांडा,
हरिवल्लभ शर्मा,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला।
अंजुमन में-
अमित वागर्थ,
आभा सक्सेना,
कल्पना रामानी,
सुरेन्द्रपाल वैद्य,
संजू शब्दिता,
छंदमुक्त
में-
उमेश मौर्य,
मंजु गुप्ता,
मंजुल
भटनागर,
सरस दरबारी,
सरस्वती माथुर,
सविता
मिश्रा।
छंदों में-
कल्पना-मिश्रा-वाजपेयी-,
ज्योतिर्मयी पंत,
टीकमचंद ढोडरिया,
प्रभु त्रिवेदी,
पवन प्रताप सिंह पवन।
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अंजुमन
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।
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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना
निदेशन : अश्विन गांधी संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन :
पूर्णिमा वर्मन
सहयोग :
कल्पना रामानी
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