111
|
आज बिखरे हैं सितारे जिधर देखो
आसमां जैसे धरा पर उतर आया
रात ने गोटे जड़ी
चूनर निकाली
झिलमिलाती है अमावस
बन दिवाली
खिलखिलाती घूमती है
खुशी घर-घर
सज गई नव-यौवना सी
रात काली
चाँद उतरा धरा पर बारात लेकर
रूप दुल्हन सा निशा का निखर आया
देहरी पर अल्पना के
रंग सजते
सांध्य-पूजन हो रहा है
शंख बजते
धूप बाती से महकती
सब दिशायें
मात लक्ष्मी के कलश
घर-द्वार सजते
रात्रि भर काली-यजन के
मन्त्र जपकर
प्रात लेकर साधना-फल सुघर आया
क्षीण हो कर बुझ रही है
दीप-बाती
जा रही है रात, कलरव
है प्रभाती
धुल रहा जग धवल किरणों से
नहा कर
भोर आई स्वप्न-नगरी
को जगाती
इस निशा मन मोहिनी को कर विदा अब
रश्मिरथ पर चढ़ दिवाकर प्रखर आया
- मानोशी चैटर्जी |