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१. १०. २०१५

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बालकनी में

 

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हम तो अपनी बालकनी में
बाग लगाए बैठे हैं

गमले में है बरगद-जामुन
गमले में ही आम लगे
सच कहते हैं यारों यह तो
हमको चारों धाम लगे
झूठे ही सब जात धरम के
दाग लगाए बैठे हैं

इस बगिया में फूलचुही
पैगाम अमन का देती है
तितली आकर उलफत के
मकरंद यहाँ पी लेती है
इसमें ईद दिवाली क्रिसमस
फाग लगाए बैठे हैं

फूल सदाकत के फूले हैं
इस छोटी फुलवारी में
महक रहा है भाईचारा
हरदम इसकी क्यारी में
दुनियावाले क्यों नफरत की
आग लगाए बैठे हैं

- शंभु शरण मंडल

इस पखवारे

गीतों में-

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शंभु शरण मंडल

अंजुमन में-

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अलका मिश्रा

छंदमुक्त में-

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शिखा गुप्ता

दोहों में-

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टीकमचंद ढोडरिया

पुनर्पाठ में-

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ममता गोयल

पिछले पखवारे
१५ सितंबर २०१५ को प्रकाशित

गीतों में-
श्रीकांत मिश्र कांत

अंजुमन में-
उर्मिला माधव

छंदमुक्त में-
निशा कोठारी

कुंडलिया में
प्रदीप शुक्ल

पुनर्पाठ में-
दिनेशचंद्र माहेश्वरी

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
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