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बालकनी में |
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हम तो अपनी बालकनी में
बाग लगाए बैठे हैं
गमले में है बरगद-जामुन
गमले में ही आम लगे
सच कहते हैं यारों यह तो
हमको चारों धाम लगे
झूठे ही सब जात धरम के
दाग लगाए बैठे हैं
इस बगिया में फूलचुही
पैगाम अमन का देती है
तितली आकर उलफत के
मकरंद यहाँ पी लेती है
इसमें ईद दिवाली क्रिसमस
फाग लगाए बैठे हैं
फूल सदाकत के फूले हैं
इस छोटी फुलवारी में
महक रहा है भाईचारा
हरदम इसकी क्यारी में
दुनियावाले क्यों नफरत की
आग लगाए बैठे हैं- शंभु शरण मंडल |
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