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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

३. ८. २०१५-

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पेड़ पीपल का

 

पेड़ पीपल का पुराना
अब गिरा कि तब गिरा।

बहुत कम तो भी नये
पत्ते निकलते हैं
मौसमों के साथ जिनके
रंग बदलते हैं
डालियाँ हैं शुष्क धमनी
टहनियाँ जैसे शिरा।

देवता बीते दिनों के
इसमे रहते हैं
ढीठ कौओं की अवज्ञा
रोज सहते हैं
क्या करें कितना कठिन है
घर बनाना दूसरा?

पुत्र की पति की कुशलता
चाहने वाली
खो गयी जाने कहाँ
पूजा की वह थाली
राम-सीता और लवकुश
याद आये मन्थरा।

इसके नीचे बैठकर
संबुद्ध हो पाना
अब नहीं सम्भव
किसी सिद्धार्थ का आना
दु:ख विजय के लिए छोड़े
कौन जीवन-सुखभरा?

- गणेश गम्भीर

इस सप्ताह

गीतों में-

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गणेश गंभीर

अंजुमन में-

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सुलभ अग्निहोत्री

छंदमुक्त में-

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डॉ. कुमार हेमंत

दोहों में-

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अमन चाँदपुरी

पुनर्पाठ में-

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जाकिर खान जाकिर

पिछले सप्ताह
२० जुलाई २०१५ के अंक में

गीतों में-

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राम अवतार सिंह तोमर ''रास''

अंजुमन में-

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डॉ. भावना

छंदमुक्त में-

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अश्विन गांधी

हाइकु में-

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वर्षा पर अनेक रचनाकार

पुनर्पाठ में-

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अल्पना सिंह

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी