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जीवन तो फूल
सरीखा है |
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जीवन तो फूल सरीखा है
खुशबू देकर झर जाना है
विष पीकर शंकर के समान
जगको अमृत कर जाना है
विषधर निंदक को भी जग में
जिस दिन कर दोगे क्षमा मीत
उस दिन समझो होगा प्रकाश
मिट जाएगी तम-अमा मीत
सब ही तो जग में अपने हैं
अपनों को प्यार लुटाना है
आना-जाना, खाना-पीना
जगना-सोना बेमानी है
उपकार बना देगा अमृत
दुनिया तो आनी-जानी है
नफरत से भरी इस धरती पर
इक प्रीत का चमन खिलाना है
मैं और मेरा, तू और तेरा
यह सब तो गोरखधंधा है
जब आँख बंद कर देखेगा
तुझ जैसा हर इक बंदा है
सब में ही खुद को देख-देख
उस परम तत्व को पाना है-
योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण |
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