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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

१३. ७. २०१५-

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कुण्डलिया हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला रचनाकारों से

जीवन तो फूल सरीखा है

  जीवन तो फूल सरीखा है
खुशबू देकर झर जाना है
विष पीकर शंकर के समान
जगको अमृत कर जाना है

विषधर निंदक को भी जग में
जिस दिन कर दोगे क्षमा मीत
उस दिन समझो होगा प्रकाश
मिट जाएगी तम-अमा मीत
सब ही तो जग में अपने हैं
अपनों को प्यार लुटाना है

आना-जाना, खाना-पीना
जगना-सोना बेमानी है
उपकार बना देगा अमृत
दुनिया तो आनी-जानी है
नफरत से भरी इस धरती पर
इक प्रीत का चमन खिलाना है

मैं और मेरा, तू और तेरा
यह सब तो गोरखधंधा है
जब आँख बंद कर देखेगा
तुझ जैसा हर इक बंदा है
सब में ही खुद को देख-देख
उस परम तत्व को पाना है

- योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण

इस सप्ताह

गीतों में-

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योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण

अंजुमन में-

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ओमप्रकाश तिवारी

नयी हवा में-

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तुलसी पिल्लई

लंबी कविता में-

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रामदरश मिश्र

पुनर्पाठ में-

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सतीशचंद्र उपाध्याय

पिछले सप्ताह
६ जुलाई २०१५ के अंक में

गीतों में-
राजेन्द्र वर्मा

अंजुमन में-
संजय विद्रोही

दिशांतर में-
पंखुरी सिन्हा

कुंडलिया में-
हातिम जावेद

पुनर्पाठ में-
केवल गोस्वामी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी