खिलखिलाया
और बेला भोर तक फूला
मै नहीं भूला
वह नए अध्याय का
प्रारम्भ होना उर्मियों में
मौन शब्दों को समझना
फिर उलझना संधियों में
और सारे अर्थ गंधों के बताता
उर्वषी की
वेणियों में
गुंथा बेला भोर तक फूला
मैं नहीं भूला
एक अनजानी छुवन का
देह को देना दिलासा
हार कर भी नेह सारा
गुनगुनाना मंगलाशा
और गहरे मंत्र देता
समय के
अभ्यर्थिनी की
साँस में
अभिसिक्त बेला भोर तक फूला
मैं नहीं भूला
दृष्टि को आकार देकर
कल्पनाओं में पिघलता
एक होती नवकहन के
रूप में ढल कर निकलता
और आशीर्वचन देता
हृदय के
अनुगामिनी की
धमनिका में
मस्त बेला भोर तक फूला
मैं नहीं भूला
- निर्मल शुक्ल
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