बापू ने तो नाम धरा था
उसका सोनकली।
लेकिन
माँ अक्सर कहती है
उसको करमजली।
रोज भुरहरे
घर आँगन में
झाड़ू ले जुटना।
लीपा पोती
चौका बर्तन में
दिन भर खटना।
बासी-कूसी खाकर भी
खुश रहती है पगली।
देर रात तक
दौड़ दौड़
घर का सब काम करे।
तिस पर भी
जाने क्यों अम्मा
रह-रह कर बिफरे।
एक पैर पर नाचा करती है
जैसे तितली।
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- मृदुल शर्मा
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