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मंत्र गूँजे
बाँसवन में
हवा ने वंशी बजाई
रास-होती उन धुनों को
सुन रहा हिरदय हमारा
नेह का मंतर अनूठा
सगुनपाखी ने उचारा
ओस-भीगी
धूप में फिर
श्याम-छवियाँ दीं दिखाई
कोई वनकन्या वहाँ थिरकी
हुईं नूपुर हवाएँ
कह रहीं पगडंडियाँ हैं
किसी निधिवन की कथाएँ
आँख-मूँदे
दिखी हमको
किसी राधा की लुनाई
बाँस का जंगल नहीं
यह तो सनातन गीत, साधो
हाट की बाज़ीगरी से
बोल इसके नहीं बाँधो
शोर चुप
होंगे तभी तो
गीत यह देगा सुनाई
- कुमार रवीन्द्र
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