प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित
 पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति-तुक-कोश

२७. ४. २०१५-

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बारिश की धूप

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सूरज कर्कश चीखे दम भर
दिन बरसाती धूल दोपहर

उमस कोसती
दोपहरी की, बेबस आँखों का भर आना
अलमारी की हर चिट्ठी से बेसुध होकर फिर बतियाना
राह देखती क्यों उसकी
ये पगली साँकल
रह-रह हिल कर

चुप-चुप  दिखती-सी
पलकों में कब से एक पता बसता है
जाने क्यों हर आनेवाला राह बताता-सा लगता है
पलकें राह लिये जीतीं हैं
बढ़ जाता
हर कोई सुनकर

गुच्ची-गड्ढे
उथले रिश्ते आपसदारी कीचड़-कीचड़
पेड़-पेड़ पर दीमक-बस्ती घाव हृदय के बेतुक बीहड़
बोझिल क्षण ले मन का बढ़ना
नम पगडंडी
सहम-बिदक कर

- सौरभ पांडेय

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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सौरभ पांडेय

अंजुमन में-

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नवीन चतुर्वेदी

छंदमुक्त में-

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मनोज चौहान

मुक्तक में-

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हरिवल्लभ शर्मा

पुनर्पाठ में-

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सुदीप शुक्ल

पिछले सप्ताह
२० अप्रैल २०१५ के अंक में

गीतों में-
डॉ. रंजना गुप्ता

अंजुमन में-
जयप्रकाश मिश्र

पाठकनामा में-
आशा सहाय

हाइकु में-
अवनीश सिंह चौहान

पुनर्पाठ में-
स्मिता दारशेतकर

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी