हाँ विरोध तीखा लगता है
तेज मिर्च
जैसे सब्जी में
आँतें इँठकर जूना जैसे
उमड़-घुमड़ हो उदर बीच में
आँखें लाल लगें गिरगिट-सी
हाथी जैसे फँसा कीच में
मुँह फूला-फूला लगता है
बुरा हाल
जैसे कब्जी में
स्वेद-स्वेद काया हो जाती
थूक सूख जाता पल भर को
दिन में भी तारे दिख जाते
थके कदम कहते चल घर को
केवल हाथों में बाकी है
जान अभी
जैसे नब्जी में
- पवन प्रताप सिंह पवन
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