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फूल, दर्द
और आँसू |
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साँस साँस लिख रही जिंदगी
पल पल नयी कहानी
कब समझी जीने वालों ने
जीवन की वीरानी
मन प्राणों को फूलों ने दी
खुश होकर खुशहाली
पेड़ों ने जीवन को बाँटी
हँस कर के हरियाली
कलियों की पीड़ा को किस दिन
काँटों ने पहचानी
ऋतुओं ने आ पेंच लड़ाये
फूलों की नगरी में
अम्बर ने आह्लाद समेटे
धरती की गगरी में
जल तो सदा सहज था लेकिन
बादल था अभिमानी
नमन डालियाँ करें राह पर
वन्दनवार सजाये
तपन विरोधी हुए छाँव संग
सारे कौल निभाये
राही ने अक्सर ही की है
पेड़ों से मनमानी
- मधुकर गौड़
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
क्षणिकाओं में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
२३ मार्च २०१५ के
अंक
में
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
लंबी कविता में-
पुनर्पाठ में-
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