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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

८. १२. २०१४-

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कैसे कह दूँ

     

कैसे कह दूँ, प्रिय तुम्हारी
याद नहीं आती
आती है लेकिन कहने में
लाज बहुत आती।

तेरे भेजे कम्बल देते
नहीं तनिक गरमाहट
पल-छिन में आँखें खुल जातीं
आहट की अकुलाहट
सुबह हुई तो आँख उनींदी
बात बहुत कह जाती।

सिसक-सिसक कर चूल्हा रोये
जब भी भात पकाऊँ,
आँसू चूल्हे के या मेरे
फर्क नहीं कर पाऊँ
क्या देखूँ अदहन
अदहन तो
खुद ही हूँ बन जाती

'मनिआडर' पाकर बाबूजी
गेंदा जैसे खिलते
बच्चे टाफी, बिस्कुटपाकर
गुब्बारों सा 'फुलते'
खुशी पिघलकर रात अकेले
तकिए से बतियाती

- ओम धीरज

इस सप्ताह

गीतों में-

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ओम धीरज

अंजुमन में-

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सुधेश

छंदमुक्त में-

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मनोरंजन तिवारी

चौपदों में-

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संजीव सलिल

पुनर्पाठ में-

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डॉ. मनोज सोनकर

पिछले सप्ताह
 १ दिसंबर २०१४ के अंक में

गीतों में-
शंभु शरण मंडल

अंजुमन में-
संजू शब्दिता

छंदमुक्त में-
सतीश सागर

कहमुकरी में-
शिव कुमार दीपक

पुनर्पाठ में-
राम संजीवन वर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी