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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

१. १२. २०१४-

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नौबजिया फूल

     

खिल जाए फिर से दुअरे पर
ठीक सुबह नौबजिया फूल

एक हाथ में बोरी बस्ता
दूजे हाथ चबेना हो
उछल कूदकर मकतब जाती
अपनी बानर सेना हो

रोज समय से बिन देरी के
पहुँचे हम अपने इस्कूल

बात बात में अड़ना पल में
लड़ना और झगड़ना हो
इक दूजे की खातिर फिर भी
हरदम जीना मरना हो

पलक झपकते मिट जाए
दिल से द्वेष कलह के शूल

शाम को जब भी वापस आए
बोझ रहे ना कोई हम पर
गुल्ली डंडा और कबड्डी
जो चाहें हम खेलें जमकर

परियोंवाली सुनें कहानी
दादी की बाहों में झूल

- शंभु शरण मंडल

इस सप्ताह

गीतों में-

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शंभु शरण मंडल

अंजुमन में-

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संजू शब्दिता

छंदमुक्त में-

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सतीश सागर

कुंडलिया में-

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शिव कुमार दीपक

पुनर्पाठ में-

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राम संजीवन वर्मा

पिछले सप्ताह
 २४ नवंबर २०१४ के अंक में

गीतों में-
रणवीर भदौरिया

अंजुमन में-
विजय प्रताप आँसू

छंदमुक्त में-
राघवेन्द्र तिवारी

कहमुकरी में-
डॉ. प्रदीप शुक्ल

पुनर्पाठ में-
सारिका कल्याण

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी