खिल जाए फिर
से दुअरे पर
ठीक सुबह नौबजिया फूल
एक हाथ में बोरी बस्ता
दूजे हाथ चबेना हो
उछल कूदकर मकतब जाती
अपनी बानर सेना हो
रोज समय से बिन देरी के
पहुँचे हम अपने इस्कूल
बात बात में अड़ना पल में
लड़ना और झगड़ना हो
इक दूजे की खातिर फिर भी
हरदम जीना मरना हो
पलक झपकते मिट जाए
दिल से द्वेष कलह के शूल
शाम को जब भी वापस आए
बोझ रहे ना कोई हम पर
गुल्ली डंडा और कबड्डी
जो चाहें हम खेलें जमकर
परियोंवाली सुनें कहानी
दादी की बाहों में झूल
- शंभु शरण
मंडल |