गीत एक टूटा
है
व्योम से सितारा सा
विवश लौट आया है
दिवस थका हारा सा
दफ्तर में अफसर की
झिड़की है घातें हैं
बातूनी फायल की
दगाबाज बातें हैं
सड़कों से सहनों तक
पसरा है पारा सा
मीठी मुस्कानें है
घातक इरादे हैं
मछली की आहट पर
बगुले दम साधे हैं
दिन छेड़े बजता है
दिनभर इकतारा सा
जनमेजय जागें अब
धनवंतरि आये अब
तक्षक ने काटा है
मंत्र कुछ जगायें अब
लहरों में हलचल है
डूबता किनारा सा।
- रणवीर
भदौरिया |