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२०. १०. २०१४-

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दिये जलाने की है बेला

     


रात अमावस
घना अँधेरा
दिये जलाने की है बेला



ड्योढ़ी पर गणपति का दीया
आँगन में पुरखों की बाती
कलश-धरी जोती में बाँचें
लछमी मइया सुख की पाती

देवा काटें
दुख बरसों का
अवधपुरी ने जो है झेला



महल और कुटिया दोनों में
नेह-भरा होवे उजियारा
भीतर जो बहती है गंगा
जल उसका हो कभी न खारा

विपदा-कष्ट
न व्यापे जग को
कोई होवे नहीं अकेला



नीचे दीयों की मजलिस है
ऊपर है तारों की महफ़िल
जो उजास है बसा आँख में
वही बने यादों की मंज़िल

उधर यक्षपुर
इधर रामगिरि
दोनों ओर दियों का मेला



- कुमार रवीन्द्र

इस सप्ताह
दीपावली विशेषांक में

गीतों में-

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कुमार रवीन्द्र

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ऋता शेखर मधु

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कृष्णनंदन मौर्य

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गीता पंडित

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जय चक्रवर्ती

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पंकज परिमल

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प्रदीप शुक्ल

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प्रणव भारती

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मनोज जैन मधुर

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रणवीर भदौरिया

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रामशंकर वर्मा

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शंभुशरण मंडल

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शशि पाधा

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शैलेन्द्र शर्मा

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संजीव सलिल

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साधना बलवटे

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सीमा हरिशर्मा

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सुरेन्द्रपाल वैद्य

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सौरभ पांडेय

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हरिवल्लभ शर्मा

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला

अंजुमन में-

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अनिल कुमार मिश्रा

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एहतेराम इस्लाम

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कल्पना रामानी

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पवन प्रताप सिंह पवन

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भारत भूषण जोशी

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शशि पुरवार

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संजू शब्दिता

छंद में-

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अनिल कुमार जैन (दोहे)

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ओमप्रकाश नौटियाल (दोहे)

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मंजु गुप्ता (हाइकु)

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हरिओम श्रीवास्तव (कहमुकरियाँ)

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सरस्वती माथुर (माहिया)

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सुरेश कुमार सौरभ (सरसी छंद)

छंदमुक्त में-

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आकुल

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मंजुल भटनागर

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विजय वर्मा

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सविता मिश्रा

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सुदर्शन प्रियदर्शिनी

हास्य व्यंग्य-

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वी.सी.राय नया

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प्रकाश सूना

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी