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अभिव्यक्ति तुक-कोश

४. ८. २०१४

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तन तो रेगिस्तानी टीला

 

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तन तो रेगिस्तानी टीला
और कैक्टस प्रान
भरा शहर वीरान

जीवन चुकता हुआ महीना
बचे नहीं सामान
ऐसे में ऋण बन कर आये
कोई नया मेहमान
किसके आगे हाथ पसारें
किससे माँगें दान
नहीं कोई जिजमान

हूक एक अन्दर से उठती
मन मेरा रो जाए
ज्यों बच्चे का एक खिलौना
घर में ही खो जाए
किससे पूछें कैसे खोजें
सब ही हैं अनजान
कैसे हैं नादान

अंग अंग पर बैठ गयी है
बोझिल एक थकान
जैसे किसी पिता के घर में
रहती सुता जवान
बिन बोले सब जग जाने
बैना लगते बान
ताले लगी जुवान 

- सुरेन्द्र सुकुमार

इस सप्ताह

गीतों में-

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सुरेन्द्र सुकुमार

अंजुमन में-

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डॉ राकेश जोशी

छंदमुक्त में-

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सुशांत सुप्रिय

कुंडलिया में-

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गोपाल कृष्ण भट्ट आकुल

पुनर्पाठ में-

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राजेश कुमार वर्मा

पिछले सप्ताह
२८ जुलाई २०१४ के वर्षा मंगल
विशेषांक दो में

अंजुमन, छंदमुक्त, दोहे, आल्हा, कुंडिलिया, त्रिभंग, कहमुकरी, हाइकु और क्षणिकाओं में निबद्ध मनमोहक रचनाओ की प्रस्तुति

तथा

२१ जुलाई २०१४ को प्रकाशित
वर्षा मंगल
विशेषांक एक में

वर्षा ऋतु को समर्पित
चालीस गीतों की रचनात्मक प्रस्तुति

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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