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तन तो
रेगिस्तानी टीला |
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तन तो रेगिस्तानी टीला
और कैक्टस प्रान
भरा शहर वीरान
जीवन चुकता हुआ महीना
बचे नहीं सामान
ऐसे में ऋण बन कर आये
कोई नया मेहमान
किसके आगे हाथ पसारें
किससे माँगें दान
नहीं कोई जिजमान
हूक एक अन्दर से उठती
मन मेरा रो जाए
ज्यों बच्चे का एक खिलौना
घर में ही खो जाए
किससे पूछें कैसे खोजें
सब ही हैं अनजान
कैसे हैं नादान
अंग अंग पर बैठ गयी है
बोझिल एक थकान
जैसे किसी पिता के घर में
रहती सुता जवान
बिन बोले सब जग जाने
बैना लगते बान
ताले लगी जुवान
- सुरेन्द्र सुकुमार |
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