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मनसुख प्यारे, मनसुख प्यारे
नहीं फँसी है एक भी मछली
तूने कैसा
जाल बुना रे
भाषण पूरा तो सुन भाई
सभा अभी तो शुरू हुई रे
देख बहलती और सहमती
परजा जैसे
छुई मुई रे
मीठे बोलों से ही कड़वा-
राजा ने ये
हाल बुना रे
जैसी भी जिसकी है मरजी
वैसे ही वो वार करे अब
बचें अगर पहुँचें उस तट तक
कैसे सागर पार करें अब
नई नाव का भी तूने तो
छेदों वाला
पाल बुना रे
- प्रदीप कांत |