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समय नदी |
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समय- नदी ले गयी बहा कर
पर्वत जैसी उम्र ढहा कर
लेकिन छूट गए हैं तट पर
कुछ लम्हें रेतीले
।1
झौकों के संग रह रह हिलती
ठहरी हुई उमंगें
ठूँठ-वृक्ष पर ज्यों अटकी हों
नाज़ुक चटख पतंगे
बहुत निकाले फँसे स्वप्न पर
जिद्दी और हठीले
।1
कुछ साथी हैं सच्चे मोती
जीवन खारा सागर
रहे डूबते - उतराते हम
शंख सीपियाँ ला कर
अभिलाषाओं के उपवन को
घेरें तार कंटीले
।1
रूखे सूखे व्यस्त किनारे
लहरें बीते पल की
ज्यों खंडहर के तहखाने में
झलकी रंगमहल की
शब्द गीत के कसे हुए हैं
तार सुरों के ढीले
- संध्या सिंह |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
क्षणिकाओं में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
२ जून २०१४ के
अंक
में
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
कुंडलिया में-
पुनर्पाठ में-
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