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राजपथ पर |
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राजपथ पर
कंटकों की क्यारियाँ हैं
।
खूबसूरत
स्वप्न सा चरितार्थ है
किंतु इसका गूढ़ कुछ
निहितार्थ है
चल सँभलकर
राह में दुश्वारियाँ हैं
।
सुख नहीं
सत्ता सदा विषपान है
जो इसे हल्के से ले
नादान है
विवादों से
इसकी पक्की यारियाँ हैं
।
तुमको जो
कहना था वो तुम कह चुके
जो किले मुश्किल थे
वो भी ढह चुके
अब नया
गढ़ने की जिम्मेदारियाँ हैं
।
जो सगे
उनसे भी है प्रतिद्वंद्विता
रेस में शामिल जिन्हें
कहते पिता
लोग तकते
अपनी-अपनी बारियाँ हैं
।
- ओमप्रकाश तिवारी |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
कुंडलिया में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
२६ मई २०१४ के
पीपल विशेषांक
में
गौरवग्राम में-नागार्जुन,
प्रभाकर
माचवे,
नरेश मेहता।
गीतों में-
ओमप्रकाश
नौटियाल,
कुमार
रवीन्द्र,
कुमार शिव,
कृष्णकांत
मधुर,
दिगंबर नसवा,
रविशंकर
मिश्र,
रामशंकर
वर्मा,
सीमा
अग्रवाल,
त्रिलोक
सिंह ठकुरेला।
अंजुमन में-
कल्पना
रामानी,
कृष्णनन्दन मौर्य,
राजगोपाल सिंह,
संजू शब्दिता,
सुबोध
श्रीवास्तव,
सुरेन्द्रपाल वैद्य।
छंदमुक्त में-
उमेश मौर्य,
उर्मिला
शुक्ल,
परमेश्वर
फुँकवाल,
मंजुल
भटनागर,
संजय
चतुर्वेदी,
सविता
मिश्रा,
सरस्वती
माथुर।
छंदों में-
कुमार गौरव
अजीतेन्दु,
ज्योतिर्मयी
पंत,
डॉ. जगदीश
व्योम, राज सक्सेना
राज,
शशि पाधा।
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