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बार-बार
खिड़की से झाँके
मौसम हुआ दीवाना सा
कुछ पगला सा, मनमाना सा
नयनों से दे दस्तक-आहट
चितवन में कुछ बोल रहा
कनखी से संकेत करे कुछ
साँकल मन की खोल रहा
साँसों से जब लिखे इबारत
लगता कुछ पहचाना सा
धूप किरन आ धरे हथेली
अंग छुए, मनुहार करे
इक पल छिटके रंग वसंती
दूजे नेह बौछार झरे
दूत बना इक पवन झकोरा
छेड़े राग सुहाना सा
क्यों न आया पोष-माघ में
कौन देस जा डाला डेरा
पश्चिम नगरी जादूगरनी
किस माया ने बाँधा घेरा
बदली बदली सूरत तेरी
रूप रंग बेगाना सा
लोग कहें तुझको बंजारा
गाँव यहाँ, औ ठाँव वहाँ
बाँध न पाए बंधन बाधा
ढ़ाई आखर रीत कहाँ
तू क्या जाने बिन तेरे यह
अँगना हुआ वीराना सा
-शशि पाधा |