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७. ४. २०१४

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खिड़की से झाँके

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बार-बार खिड़की से झाँके
मौसम हुआ दीवाना सा
कुछ पगला सा, मनमाना सा

नयनों से दे दस्तक-आहट
चितवन में कुछ बोल रहा
कनखी से संकेत करे कुछ
साँकल मन की खोल रहा
साँसों से जब लिखे इबारत
लगता कुछ पहचाना सा

धूप किरन आ धरे हथेली
अंग छुए, मनुहार करे
इक पल छिटके रंग वसंती
दूजे नेह बौछार झरे
दूत बना इक पवन झकोरा
छेड़े राग सुहाना सा

क्यों न आया पोष-माघ में
कौन देस जा डाला डेरा
पश्चिम नगरी जादूगरनी
किस माया ने बाँधा घेरा
बदली बदली सूरत तेरी
रूप रंग बेगाना सा

लोग कहें तुझको बंजारा
गाँव यहाँ, औ ठाँव वहाँ
बाँध न पाए बंधन बाधा
ढ़ाई आखर रीत कहाँ
तू क्या जाने बिन तेरे यह
अँगना हुआ वीराना सा

-शशि पाधा

इस सप्ताह

गीतों में-

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शशि पाधा

अंजुमन में-

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सुरेन्द्रपाल वैद्य

छंदमुक्त में-

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भास्कर चौधरी

कुंडलिया में-

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ओमप्रकाश तिवारी

पुनर्पाठ में-

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अंशुमान शुक्ला

पिछले सप्ताह
३१ मार्च २०१३ के अंक में

गीतों में-

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कृष्णनंदन मौर्य

अंजुमन में-

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बसंत ठाकुर

छंदमुक्त में-

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विभारानी

क्षणिकाओं में-

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रामशिरोमणि पाठक

पुनर्पाठ में-

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अमित माथुर

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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