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1धरती
की बाँहें1 |
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पेड़ नहीं हैं,
उठी हुई
धरती की बाहें हैं।
तेरे–मेरे लिए माँगती
रोज़ दुआएँ हैं।
पेड़ नहीं हैं,
ये धरती की
खुली निगाहें हैं,
तेरे–मेरे लिए निरापद
करती राहें हैं।
पेड़ नहीं हैं
पनपी धरती
गाहे गाहें हैं
तेरे मेरे जी लेने की
विविध विधाएँ हैं।
पेड़ नहीं हैं
ये धरती ने
यत्न जुटाए हैं
तेरे मेरे लिए अनेकों
रत्न लुटाए हैं।
पेड़ नहीं हैं
ये धरती ने
चित्र बनाए हैं
तेरे मेरे जाने कितने
मित्र जुटाए हैं।
पेड़ नहीं हैं
ये धरती ने
चँवर ढुलाए हैं
तेरे मेरे लिये छाँह के
गगन छवाए हैं
पेड़ नहीं हैं
ये धरती ने
सगुन सजाए हैं
तेरे मेरे लिये ढूँढ के
जतन जताए हैं।
पेड़ नहीं हैं
ये धरती ने
अलख जगाए हैं
तेरे मेरे लिये अनेकों
द्वार सजाए हैं।
पेड़ नहीं हैं
अस्तित्वों के
बीज बिजाए हैं
तेरे मेरे जीने के विश्राम जुड़ाए
हैं।
-मरुधर मृदुल |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
हाइकु में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
१७ मार्च २०१३ के
होली विशेषांक
में
गीतों में-
कृष्णनंदन मौर्य,
जगदीश
पंकज,
पद्मा
मिश्रा,
पूर्णिमा वर्मन,
मुन्नी
शर्मा,
मेघ
सिंह मेघ,
राकेश खंडेलवाल,
रामशंकर वर्मा,
शशि पुरवार,
सीमा
अग्रवाल।
दोहों में-
ओमप्रकाश नौटियाल,
ज्योतिर्मयी पंत,
ज्योत्सना शर्मा,
देवमणि
पांडेय,
मंजुल भटनागर,
शशि
पाधा।
छंदमुक्त में-
निर्मल
गुप्त,
परमेश्वर फुँकवाल,
मीना
चोपड़ा,
राहुल
देव,
सरस्वती
माथुर।
अंजुमन में-
कल्पना
रामानी,
राज
सक्सेना,
सुरेन्द्रपाल वैद्य।
कहमुकरी में-
पीयूष द्विवेदी
भारत, राजेश कुमारी, सुनील कुमार झा,
रश्मि प्रभा की
कहमुकरियाँ।
कुंडलिया में-
डॉ. प्रदीप शुक्ल।
काव्य संगम में-
राजेन्द्र स्वर्णकार
के राजस्थानी दोहे भावार्थ सहित
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