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१०. ३. २०१४

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महक उठी अँगनाई
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 ११११११११११ चम्पा चटकी इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई

उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए
पवन फागुनी लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ

निंदिया आई अखियों में और
सपने भरे लुनाई।
चम्पा चटकी इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई

श्वेत चाँद सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष सी लागे
शैशव चलता ठुमक ठुमक कर
दिन तितली से भागे।

नेह अरक में डूबी पैंजन -
बजे खूब शहनाई।
चम्पा चटकी इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई

-शशि पुरवार

इस सप्ताह

गीतों में-

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शशि पुरवार

अंजुमन में-

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प्राण शर्मा

छंदमुक्त में-

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उषा यादव उषा

कहमुकरी में-

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पीयूष द्विवेदी भारत

पुनर्पाठ में

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बागेश्री चक्रधर



 

पिछले सप्ताह
३ मार्च २०१३ के अंक में
 

गीतों में-
कल्पना रामानी

अंजुमन में-
नवीन चतुर्वेदी

छंदमुक्त में-
केशव शरण

कुंडलिया में-
महावीर उत्तरांचली

पुनर्पाठ में-
अभिनव कुमार सौरभ

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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