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कैसे धीर धरे मन नाविक
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कैसे धीर धरे मन-नाविक
नाव पुरानी है
दरिया में तूफान उठा है
गहरा पानी है
आये हैं फिर वही प्रवासी
उजले पाँखों के
सोन मछरिया की तलाश में
करतब आँखों के
इनकी भक्ति जगत जाहिर यह
कथा-कहानी है
अब भी जाग रहे हैं किस्से
बन्दरगाहों में
अनचाहे मेहमान आ गये
अपनी बाँहों में
पीठ-पीठ जख्मों की गहरी
पड़ी निशानी है
बँधे हाथ, स्वागत मुद्राएँ
जय जयकारों में
छले जा रहे हैं अब भी हम
खड़े कतारों में
दवा बाँटने वाले हाथों
जहर खुरानी है
-जयप्रकाश नायक |
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