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जमींदार सी
ठंड खड़ी है |
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जमींदार सी ठंड खड़ी है
कारिन्दों से मेघ गरजते
सर्द हवा की
भाँज लाठियाँ, जन-जन को
ललकार रहे हैं
खिड़की से ले दरवाजे तक
रह-रह धक्के मार रहे हैं
घबराहट में लोग बेचारे छिपे
घरों में
बचते-बचते
होने लगीं
बंद बाजारें, सड़कों पर
छाया सन्नाटा
बूँदों की जुल्मी टोली ने
भी बवाल कुछ ऐसा काटा
सेहत-धन की रक्षा करने तन
ढँक भागे
सभी झपटते
रोज कमा
खानेवालों की फूटेगी फिर
आज रुलाई
ना पूरी पर आधे दिन की
ही लगान में गई कमाई
गुस्से में आया है मौसम घूम
रहा है
पाँव पटकते-कुमार
गौरव अजितेन्दु |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
कुंडलिया में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
३० दिसंबर २०१३,
नववर्ष विशेषांक
में
गीतों में-
अनिल
वर्मा,
आकुल,
कृष्णनंदन मौर्य,
गीता
पंडित,
गुणशेखर,
जगदीश
पंकज,
जयकृष्ण
राय तुषार,
नचिकेता,
नितिन जैन,
प्रवीण
पंडित,
ब्रजेश नीरज,
मधु
शुक्ला,
मानोशी
चैटर्जी,
रविशंकर मिश्र रवि,
राणाप्रताप सिंह,
राममूर्ति सिंह अधीर,
रोहित रुसिया,
शंभु शरण मंडल,
शशि पाधा,
शशि पुरवार,
संजू
शब्दिता,
सत्यनारायण सिंह,
सुशील
कुमार गौतम। अंजुमन में- ओम नीरव,
ज्योतिर्मयी पंत,
कल्पना
रामानी,
अमित
दुबे,
सुरेन्द्रपाल वैद्य,
सुवर्णा
दीक्षित। छंदमुक्त में-
उर्मिला शुक्ला,
भावना सक्सेना.
संध्या
सिंह,
सरस्वती माथुर, छंदमुक्त में-
ओमप्रकाश नौटियाल,
प्रेम मोहन। छोटे छंदों में-
राज सक्सेना राज (मुक्तक),
सौरभ (दोहे)
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