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अब नहीं
होते हृदय के तार झंकृत |
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अब नहीं होते
हृदय के तार झंकृत
सो गए हैं
राग भरकर रागिनी में
कोई अब गाता नहीं
पीठ दे बैठे हृदय दो
कोई समझाता नहीं
दुख किसी का, दुखी कोई
लोग ऐसे
खो गए हैं
सतह से उठते हुए पल
दृष्टि चौकस रख न पाए
पोटली उपलब्धियों की
छीन कोई ले न जाए
खेत, फसलें, बाड़ खाकर
सिपाही सब
सो गए हैं
साथ रहकर, साथ रहना
सीख जाते साथ ही तो
साथ दोनों हृदय होते
देह तो थी साथ ही तो
रेत गीली है अभी तक
नयन किसके
रो गए हैं
-राजा अवस्थी |
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