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२. १२. २०१३

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मैंने अपना गाँव लिखा

            

  राह में चलते
और टहलते मैंने
अपना गाँव लिखा
भरी भीड़ में पगडंडी पर
चलते नंगे पाँव लिखा

बूढ़ी दादी
के अन्तस में
पलता एक खयाल लिखा
मंदिर सा पूजा घर अपना
मैंने अपनी ठाँव लिखा

बादल की
मनुहारें करता
गाता एक किसान लिखा
बरखा की आशा में चिट्ठी
लिखता सारा गाँव लिखा

बूढ़ा बरगद,
पोखर-झरना
नदी किनारे नाव लिखा
माटी के टीलों पर चढ़ना
और फिसलना चाव लिखा

भाईचारे
बीच पनती
रिश्तों की चौपाल लिखा
सुख दुःख में साथी सब अपने
कभी धूप कभी छाँव लिखा

तन को
माटी का घर लिक्खा
जनम मरण के नाम लिखा
नदी किनारे ढलता सूरज
चलता उल्टे पाँव लिखा

-सुरेन्द्र शर्मा

इस सप्ताह

गीतों में-

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सुरेन्द्र शर्मा

अंजुमन में-

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राम मेश्राम

छंदमुक्त में-

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स्वदेश भारती

लंबी कविताओं में-

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नरेन्द्र त्रिपाठी राम का महाप्रयाण

पुनर्पाठ में-

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अमरेन्द्र नारायण

पिछले सप्ताह
२५ नवंबर २०१३ के अंक में

गीतों में-

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किशन सरोज

अंजुमन में-

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अश्वनि शर्मा

छंदमुक्त में-

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गोविंद कुमार गुंजन

छोटी कविताओं में-

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परमेश्वर फुँकवाल

पुनर्पाठ में-

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संकेत गोयल

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   

 

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