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नींद सुख की |
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नींद सुख की फिर हमें सोने न
देगा
यह तुम्हारे नैन में तिरता
हुआ जल
छू लिए
भीगे कमल भीगी ॠचाएँ
मन हुए गीले बहीं गीली हवाएँ
बहुत सम्भव है डुबो दे सृष्टि सारी
दृष्टि के आकाश में घिरता
हुआ जल
हिमशिखर,
सागर, नदी-झीलें, सरोवर
ओस, आँसू, मेघ, मधु-श्रम-बिंदु, निर्झर
रूप धर अनगिन कथा कहता दुखों की
जोगियों-सा घूमता-फिरता
हुआ जल
लाख बाँहों में
कसें अब ये शिलाएँ
लाख आमंत्रित करें गिरि-कंदराएँ
अब समंदर तक पहुँचकर ही रुकेगा
पर्वतों से टूटकर गिरता
हुआ जल -किशन सरोज |
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