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धूप ने पहने
कपड़े कुहरीले |
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सिर पर चढ़ी धूप ने पहने
कपड़े कुहरीले
काँपे तन-मन चुभे शीत के
ये शर जहरीले
चारो ओर धुंध का घेरा
नजर न कुछ आये
राख मले जोगी-सा मौसम
जिसे न जग भाये
दबे पाँव आकर छुप जाते
दिन हैं शर्मीले
वृक्षों और लताओं के अब
पीत हुए पत्ते
इन पत्तों पर गिरे ओस-कण
आँसू-से झरते
उपवन, खेत-मेड़, पगडण्डी
सब गीले-गीले
पंछी दुबक गये कोटर में
सूनी अँगनाई
लेकिन चक्की से चूल्हे तक
नाच रही माई
सर्द अलाव हुआ तो बाबा
हुए लाल-पीले-देवेन्द्र
सफल |
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