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घोड़ा थका
हुआ |
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दिग्विजयी चिह्न लिये खूँटे
पर आया
थका हुआ वो घोड़ा
बहुत हिनहिनाया
वे भी क्या दिन थे
जब हवा हुआ करता था
होड़ों में
जोड़ों में
सवा हुआ करता था
पर विकसित होने के
स्वप्न में समाया
सूमों से मादिनी
हथनियों के माथ पर
चित्र लिखे
हैं जिसने
पौरुष के रंग भर
वही आज
पाँव उठाया तो थर्राया
दुर्गम की तामीली
में बाजी जान की
लग कर
हर टाप हुई
सील हुक्मरान की
घास हेतु अर्जी में
वही फुरफराया-
अनिरुद्ध नीरव |
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